मेरु
From जैनकोष
- सुमेरु पर्वत–देखें - सुमेरु ।
- वर्तमान भूगोल की अपेक्षा मेरु−देखें - सुमेरु ।
- म. पु./५९/श्लोक नं.- ‘‘पूर्व भव नं. ९ में कोशल देश में वृद्धग्राम निवासी मृगायण ब्राह्मण की स्त्री मथुरा थी ।२०७। पूर्व भव नं. ८ में पोदन नगर के राजा पूर्ण चन्द्र की पुत्री रामदत्त हुई । (२१०)। पूर्व भव नं. ७ में महाशुक्र स्वर्ग में भास्कर देव हुआ । (२२६)। पूर्व भव नं. ६ में धरणीतिलक नगर के राजा अतिवेग की पुत्री श्रीधरा हुई । (२२८)। पूर्व भव नं. ५ में कापिष्ठ स्वर्ग के रुचक विमान में देव हुआ । (२३८)। पूर्व भव नं. ४ में धरणीतिलक नगर के राजा अतिवेग की पुत्री रत्नमाला हुई । (२४१-२४२)। पूर्व भव नं. ३ में स्वर्ग में देव हुआ और पूर्व भव नं. २ में पूर्व धातकी खण्ड के गन्धिल देश के अयोध्या नगर के राजा अर्हदास का पुत्र ‘वीतभय’ नामक बलभद्र हुआ । (२७६-२७९)। पूर्वभव में लान्तव स्वर्ग में आदित्यप्रभ नामक देव हुआ । (२८०)। वर्तमान भव में उत्तर- मथुरा नगरी के राजा अनन्तवीर्य का पुत्र हुआ । (३०२)। पूर्व भव के सम्बन्ध सुनकर भगवान् विमलवाहन (विमलनाथ) के गणधर हो गये । (३०४)। सप्त ॠद्धि युक्त हो उसी भव से मोक्ष गये । (३०९)।’’- [युगपत् सर्व भव के लिए ।- देखें - म . पु./५९/३०८-३०९] ।