वाक्य
From जैनकोष
न्या.वि./वृ./१/६/१३७/१४ वाक्यं नाम पदसंदोहकल्पितं नाखण्डैकरूपम्। = वाक्य नाम पदों के समूह का है, अखण्ड एक रूप का नहीं।
न्या.सू./मू./२/१/६२-६५ विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात् ।६२। विधिर्विधायकः।६३। स्तुतिर्निन्दा परकृतिः पुरा-कल्प इत्यर्थवादः।६४। विधिविहितस्यानुवचनमनुवादः।६५। = ब्राह्मण ग्रन्थों का तीन प्रकार से विनियोग होता है - विधिवाक्य, अर्थवाक्य, अनुवादवाक्य।६२। आज्ञा या आदेश करने वाले वाक्य विधिवाक्य है। अर्थवाद चार प्रकार का है - स्तुति, निन्दा, परकृति और पुराकल्प (इनके लक्षणों के लिए देखें - वह वह नाम)। विधि का अनुवचन और विधि से जो विधान किया गया उसके अनुवचन को अनुवाद कहते हैं।
- वचन के अनेकों भेद व लक्षण - देखें - वचन।