अप्राप्तकाल
From जैनकोष
न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय संख्या ५/२/११ अवयवविपर्यासवचनमप्राप्तकालम् ।।११।।
= प्रतिज्ञा आदि अवयवोंका जैसा लक्षण कहा गया है, उससे विपरीत आगे पीछे कहना। अर्थात् जिस अवयवके पहिले या पीछे जिस अवयवके कहनेका समय है, उस प्रकारसे न कहनेको अप्राप्त काल नामक निग्रहस्थान कहते हैं। क्योंकि क्रमसे विपरीत अवयवोंके कहनेसे साध्यकी सिद्धि नहीं होती।
(श्लोकवार्तिक पुस्तक संख्या पु.४/न्या.२११/३९१/१)