पंकभाग
From जैनकोष
ति. प./२/९,१९ खरपंकबहुलभागारयणप्पहाए पुढवीए। ९। पंकाजिरो य दीसदि एवं पंकबहुलभागो वि। १९। [पङ्कबहुल-भागे असुरराक्षसानामावासाः। रा.वा.] = अधोलोक में सबसे पहली रत्नप्रभा पृथ्वी है। उसके तीन भाग हैं - खरभाग, पंकभाग व अब्बहुल भाग। ९। पंकबहुलभाग भी जो पंक से परिपूर्ण देखा जाता है। १९। इसमें असुरकुमारों और राक्षसों के आवास स्थान हैं। (रा.वा./३/१/८/१६०/२०); (ज. प./११/११५-१२३)
- लोक में पंकभाग पृथिवी का अवस्थान- देखें - भवन / ४ ।