परमार्थ बाह्य
From जैनकोष
स.सा./ता.वृ./१५२-१५३/२१७ भेदज्ञानाभावात् परमार्थबाह्याः। १५२। परमसामायिकमलभमानाः परमार्थबाह्याः। १५३। = भेदज्ञान के न होने के कारण परमार्थबाह्य कहलाते हैं। १५२। परम सामायिक को नहीं प्राप्त करते हुए परमार्थ बाह्य होते हैं। १५३।