पार्श्वनाथ
From जैनकोष
म.पु./७३/ श्लोक पूर्व के नवमें भव में विश्वभूति ब्राह्मण के घर में मरुभूति नामक पुत्र थे (७-९)। फिर वज्रघोष नामक हाथी हुए (११-१२)। वहाँ से सहस्रार स्वर्ग में देव हुए (१६-२४)। फिर पूर्व के छठे भव में रश्मिवेग विद्याधर हुए (२५-२६)। तत्पश्चात् अच्युत स्वर्ग में देव हुए (२९-३१)। वहाँ से च्युत हो वज्रनाभि नाम के चक्रवर्ती हुए (३२)। फिर पूर्व के तीसरे भव में मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए (४०) फिर आनन्द नामक राजा हुए (४१-४२)। वहाँ से प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुए (६७-६८)। तत्पश्चात् वहाँ से च्युत होकर वर्तमान भव में २३वें तीर्थङ्कर हुए। अपरनाम ‘सुभौम’ था। १०९। (और भी देखें - म .पु./७३/१६९) विशेष परिचय - देखें - तीथकर / ५ ।