प्रतिबोध
From जैनकोष
ध./३,४१,८५/१० सम्महंसण-णाण-वद-सील-गुणाणमुज्जालणं कलंकपक्खालणं संधुक्खणं वा पडिबुज्झणं णाम । = सम्यग्दर्शन-ज्ञान, व्रत और शील गुणों को उज्ज्वल करने, मलको धोने अथवा जलाने का नाम प्रतिबोधन है ।
ध./३,४१,८५/१० सम्महंसण-णाण-वद-सील-गुणाणमुज्जालणं कलंकपक्खालणं संधुक्खणं वा पडिबुज्झणं णाम । = सम्यग्दर्शन-ज्ञान, व्रत और शील गुणों को उज्ज्वल करने, मलको धोने अथवा जलाने का नाम प्रतिबोधन है ।