प्रतिभग्न
From जैनकोष
क.पा.३/३,२२/४०९/२३१/९ उक्कस्सट्ठिदि बंधंतो पडिहग्गहपढमादिसमएसु सम्मत्तं ण गेण्हदि त्ति जाणावणट्ठमंतोमुहुत्तद्धं पडिभग्गो त्ति भणिदं । = प्रतिभग्न शब्द का अर्थ उत्कृष्ट स्थिति बंध के योग्य उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणामों से प्रतिनिवृत्त होकर विशुद्धि को प्राप्त हुआ होता है ।