प्रदेश विरच
From जैनकोष
ध. १४/५,६,२८७/३५२/३ कर्मपुद्गलप्रदेशो विरच्यते अस्मिन्निति प्रदेशविरचः कर्मस्थितिरिति यावत् । अथवा विरच्यते इति विरचः प्रदेशश्चासौ विरचश्च प्रदेशविरचः विरच्यमानकर्मप्रदेश इति यावत् । = कर्मपुद्गलप्रदेश जिसमें विरचा जाता है अर्थात् स्थापित किया गया है वह प्रदेशविरच कहलाता है । अभिप्राय यह है कि यहाँ पर प्रदेशविरच से कर्मस्थिति ली गयी है । अथवा विरच पद की निरुक्ति यह है - विरच्यते अर्थात् जो विरचा जाता है उसे विरच कहते हैं । तथा प्रदेश जो विरच वह प्रदेश विरच कहलाता है । प्रदेशविरच्यमान कर्म प्रदेश यह उसका अभिप्राय है ।