प्रभा
From जैनकोष
रा.वा./३/१/४/१५९/२३ न दीप्तिरूपैव प्रभा । किं तर्हि । द्रव्याणां स्वात्मैव मृजा प्रभा यत्संनिधानात् मनुष्यादीनामयं संव्यवहारो भवति स्निग्धकृष्णप्रभमिदं रूक्षकृष्णप्रभमिदमिति । = केवल दीप्ति का नाम ही प्रभा नहीं है किन्तु द्रव्यों का जो अपना विशेष-विशेष सलोनापन होता है, उसी को कहा जाता है कि यह स्निग्धकृष्णप्रभावाला है । यह रूक्षकृष्णप्रभा वाला है ।