प्रयोजन
From जैनकोष
न्या.सू./मू.टी.१/१/२४/३० यमर्थमधिकृत्य प्रवर्तते तत्प्रयोजनम् ।२४। यमर्थमाप्तव्यं हातव्यं वाध्यवसाय तदास्ति होनोपायमनुतिष्ठिति प्रयोजनं तद्वेदितब्यम्। = जिस अर्थ को पाने या छोड़ने योग्य निश्चय करके उसके पाने या छोड़ने का उपाय करता है, उसे प्रयोजन कहते हैं ।