प्रवरवाद
From जैनकोष
ध.१३/५,५,५०/२८७/८ स्वर्गापवर्गमार्गत्वाद्रत्नत्रयं प्रवरः । स उद्यते निरूप्यते अनेनेति प्रवरवादः । = स्वर्ग और अपवर्ग का मार्ग होने से रत्नत्रय का नाम प्रवर है उसका वाद अर्थात् कथन इसके द्वारा किया जाता है, इसलिए इस आगम का नाम प्रवरवाद है ।