प्रसंगसमा जाति
From जैनकोष
न्या. सू./मू.व,टी./५/१/९/२९१ दृष्टान्तस्य कारणानपदेशात् प्रत्यवस्थानाच्च प्रतिदृष्टान्तेन प्रसंगप्रतिदृष्टान्तसमौ ।९। साधनस्यापि साधनं वक्तव्यमिति प्रसङ्गेन प्रत्यवस्थानं प्रसङ्गसमः प्रतिषेधः । क्रियाहेतुगुणयोगी क्रियावान् लोष्ट इति हेतुर्नापदिश्यते न च हेतुमन्तरेण सिद्धिरस्तीति । = वादी ने जिस प्रकार साध्यका भी साधन कहा है, वैसे ही साधन का भी साधन करना या दृष्टान्तकी भी वादी की सिद्धि करनी चाहिए इस प्रकार प्रतिवादी द्वारा कहा जाना प्रसंगसमा जाति है । जैसे - क्रिया के हेतुभूत गुणों का सम्बन्ध रखने वाला डेल क्रियावान् किस हेतु से माना जाता है । दृष्टान्त की भी साध्य से विशिष्टपने करके प्रतिपत्ति करने में वादी को हेतु करना चाहिए । उस हेतु के बिना तो प्रमेय की व्यवस्था नहीं हो सकती है । (श्लो.वा.४/न्या./३५९-३६३/४८७ में इस पर चर्चा ) ।