प्रस्थापक
From जैनकोष
ध. ६/१,९-८, १२/२४७/७ कदकरणिज्जपढमसमयप्पहुडि उवरि णिट्ठवगो उच्चदि । = कृतकृत्य वेदक होने के प्रथम समय से लेकर ऊपर के समय में दर्शनमोह की क्षपणा करने वाला जीव निष्ठापक कहलाता है ।
गो.क./जी.प्र./५५०/७४४/१० दर्शनमोहक्षपणाप्रारम्भप्रथमसमयस्थापित-सम्यक्त्वप्रकृतिप्रथमस्थित्यान्तर्मुहूर्तावशेषे चरमसमयप्रस्थापकः अनन्तरसमयादाप्रथस्थितिचरमनिषेकं निष्ठापकः । = दर्शनमोह क्षपणा के प्रारंभ समय में स्थापी गयी सम्यक्त्व प्रकृति की प्रथम स्थिति का अन्तर्मुहूर्त अवशेष रहने पर, उसके अन्त समय पर्यन्त तो प्रस्थापक कहलाता है । और उसके अनन्तर समय से प्रथम स्थिति के अन्त निषेक पर्यन्त निष्ठापक कहलाता है ।