प्राकार
From जैनकोष
ध. १४/५,६,४२/४०/७ जिणहरादीणं रक्खट्ठंप्पासेसु ट्ठविदओलित्तीओ पागारा णाम । पक्किटाहि घडिदवरंडा वा पागारा णाम । = जिनगृह आदि की रक्षा के लिए पार्श्व में जो भीतें बनायी जाती हैं वे प्राकार कहलाती हैं, अथवा पकी हुई ईंटों जो वरण्डा बनाये जाते हैं वे प्राकार कहलाते हैं ।