मनुष्य व्यवहार
From जैनकोष
प्र.सां./पं. जयचन्द्र/९४ ‘मैं मनुष्य हूँ, शरीरादि की समस्त क्रियाओं को मैं करता हूँ, त्री, पुत्र धनादिक के ग्रहण-त्याग का मैं स्वामी हूँ’ इत्यादि मानना सो मनुष्य व्यवहार है।
प्र.सां./पं. जयचन्द्र/९४ ‘मैं मनुष्य हूँ, शरीरादि की समस्त क्रियाओं को मैं करता हूँ, त्री, पुत्र धनादिक के ग्रहण-त्याग का मैं स्वामी हूँ’ इत्यादि मानना सो मनुष्य व्यवहार है।