मल्लधारी देव
From जैनकोष
- नन्दि संघ के देशीयगण की नय कीर्तिशाखा में श्रीधरदेव के शिष्य तथा चन्द्रकीर्ति के गुरु थे। समय–वि. १०७५-११०५(ई.१०१८-१०४८)– देखें - इतिहास / ७ / ५ ।
- मल्लिषेण की उपाधि थी। (विशेष देखें - मल्लिषेण / २ )।
- नियमसार की टीका के रचयिता पद्मप्रभ की उपाधि थी।– देखें - पद्मप्रभ / २ ।
- आ. बालचन्द्र की उपाधि थी।–देखें - बालचन्द्र।