महापुराण
From जैनकोष
आ. जिनसेन द्वि. (ई. ८१८-८७८) कृत कलापूर्ण संस्कृत काव्य जिसे इनकी मृत्यु के पश्चात् इनके शिष्य आ. गुणभद्र ने ई. ८९८ में पूरा किया। जिनसेन वाले भाग का नाम आदि पुराण है जिसमें भगवान् ऋषभ तथा भरत बाहुबली का चरित्र चित्रित किया गया है। इसमें ४७ पर्व तथा १५००० श्लोक हैं। गुणभद्र वाले भाग का नाम उत्तर पुराण है जिसमें शेष २३ तीर्थंकरों का उल्लेख है। इसमें २९ पर्व और ८००० श्लोक हैं। दोनों मिलकर महापुराण कहलाता है। देखें - आदि पुराण तथा उत्तर पुराण / २. कवि पुष्पदन्त (ई. ९६५) कृत उपर्युक्त प्रकार दो खण्डों में विभक्त अपभ्रंश महाकाव्य। अपर नाम ‘तीसट्ठि महापुरिगुणालंकार’। दोनों में ८०+४२ सन्धि और २०,००० श्लोक हैं। (ती./४/११०)। ३. मल्लिषेण (ई. १०४७) कृत २००० श्लोक प्रमाण तेरसठ शलाका पुरुष चरित्र। (ती. /३/१७४)। रचा था।