महावीर
From जैनकोष
- प्रथम दृष्टि से भगवान् की आयु आदि
ध.९/४,१,४४/१२० पण्णारहदिवसेहिं अट्ठहि मासेहि य अहियं पचहत्तरिवासावसेसे चउत्थकाले ७५-८-१५ पुप्फुत्तरविमाणादो आसाढजोण्णपक्खछट्ठीए महावीरो बाहात्तरिवासाउओ तिणाणहरो गब्भमोइण्णो। तत्थ तीसवासाणि कुमारकालो, वारसवसाणि तस्स छदुमत्थकालो, केवलिकालो वि तीसं वासाणि; एदेसिं तिण्हं कालाणं समासो बाहत्तरिवासाणि।= १५ दिन और ८ मास आधिक ७५ वर्ष चतुर्थ काल में शेष रहने पर पुष्पोत्तर विमान से आषाढ शुक्ला षष्ठी के दिन ७२ वर्ष प्रमाण आयु से युक्त और तीन ज्ञान के धारक महावीर भगवान् गर्भ में अवतीर्ण हुए। इसमें ३० वर्ष कुमारकाल, १२ वर्ष उनका छद्मस्थकाल और ३० वर्ष केवलिकाल इस प्रकार इन तीनों कालों का योग ७२ वर्ष होता है। (क.पा. १/१,१/५६/७४/९)। - दिव्यध्वनि या शासनदिवस की तिथि व स्थान
ध.१/१,१,१/गा.५२-५७/६१-६३ पंचसेलपुरे सम्मे विउले पव्वदुत्तमे। ...।५२। महावीरेणत्थो कहिओ भवियलोयस्स ।५३। ... इम्मिस्से वसिप्पिणीए चउत्थ-समयस्स पच्छिमे भाए। चोत्तीसवाससेसे किंचि विसेसूणए संते।५५। वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्हि सावणे बहुले। पाडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्हि।५६। सावण बहुलपडिवदे रुद्दमुहुत्ते सुहोदए रविणो। अभिजिस्स पढमजोए जत्थ जुगादी मुणेयव्वो।५७। = पंचशैलपुर में (राजगृह में) रमणीक, विपुल व उत्तम, ऐसे विपुलाचल नाम के पर्वत के ऊपर भगवान् महावीर ने भव्य जीवों को उपदेश दिया।५२। इस अवसर्पिणी कल्पकाल के दुःषमा-सुषमा नाम के चौथे काल के पिछले भाग में कुछ कम ३४ वर्ष बाकी रहने पर, वर्ष के प्रथममास अर्थात् श्रावण मास में प्रथम अर्थात् कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन प्रात:काल के समय आकाश में अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर तीर्थ की उत्पत्ति हुई।५५-५६। श्रावणकृष्ण प्रतिपदा के दिन रुद्रमुहूर्त में सूर्य का शुभ उदय होने पर और अभिजित् नक्षत्र के प्रथम योग में जब युग की आदि हुई तभी तीर्थ की उत्पत्ति समझना चाहिए। (ध.९/४,१,४४/गा.२९/१२०), (क.पा./१/१-१/५६/गा.२०/७४)।
ध.९/४,१,४४/१२०/९ छासट्ठिदिवसावणयणं केवलकालम्मि किमट्ठं करिदे। केवलणाणे समुप्पण्णे वि तत्थ तित्थाणुप्पत्तीदो। = केवलज्ञान की उत्पत्ति हो जाने पर भी ६६ दिन तक उनमें तीर्थ की उत्पत्ति नहीं हुई थी, इसलिए उनके केवलीकाल में ६६ दिन कम किये जाते हैं। (क.पा. १/१,१/५७/७५/५)। - द्वि. दृष्टि से भगवान् की आयु आदि
ध.९/४,१,४४/ टीका व गा. ३०-४१/१२१-१२६ अण्णे के वि आइरिया पंचहि दिवसेहि अट्ठहि मासेहि न ऊणाणि बाहत्तरि वासाणि त्ति वड्ढमाणजिणिंदाउअं परूवेंति ७१-३-२५। तेसिमहिप्पाएण गब्भत्थ–कुमार-छदुमत्थ-केवल-कालाणं परूवणा कीरदे। तं जहा... (पृष्ठ १२१/५)। आसाढजोण्णपक्खे छट्ठीए जोणिमुवपादो।गा.३१। अच्छित्ता णवमासे अट्ठ य दिवसे चइत्तसियपक्खे। तेरसिए रत्तीए जादुत्तरफग्गुणीए दु।गा.३३। अट्ठावीसं सत्त य मासे दिवसे य बारसयं।गा.३४। आहिणिबोहियबुद्धो छट्ठेण य मग्गसीसबहुले दु। दसमीए णिक्खंतो सुरमहिदो णिक्खमणपुज्जो।गा.३५। गमइ छदुमत्थत्तं बारसवासाणि पंच मासे य। पण्णारसाणि दिण्णाणि तिरयणसुद्धो महावीरो।गा.३६। वइसाहजोण्णपक्खे दसमीए खवगसेढिमारूढो। हंतूण घाइकम्मं केवलणाणं समाबण्णो।गा.३८। वासाणूणत्तीसं पंच य मासे यं बीसदिवसे य।...। गा.३९। पाच्छा पावाणयरे कत्तियमासे य किण्हचोद्दसिए। सादीए रत्तीए सेसरयं छेत्तु णिव्वाओ।गा.४०। परिणिव्वुदे जिणिंदे चउत्थकालस्स जं भवे सेसं। बासाणि तिण्णि मासा अट्ठ य दिवसा वि पण्णरसा।गा.४१। ... एदं कालं वड्ढमाणजिणिंदाउअम्मि पक्खित्ते दसदिवसाहियपंचहत्तरिवासमेत्तावसेसे चउत्थकाले सग्गादो वड्ढमाणजिणिंदस्स ओदिण्णकालो होदि। = अन्य कितने ही आचार्य भगवान् की आयु ७१ वर्ष ३ मास २५ दिन बताते हैं। उनके अभिप्रायानुसार गर्भस्थ, कुमार, छद्मस्थ और केवलज्ञान के कालों की प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार कि–गर्भावतार तिथि = आषाढ शु.६; गर्भस्थकाल = ९ मास–८ दिन; जन्म-तिथि व समय =चैत्र शु. १३ की रात्रि में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र; कुमारकाल = २८ वर्ष ७ मास १२ दिन; निष्क्रमण तिथि ; मगसिर कृ. १०; छद्मस्थकाल=१२ वर्ष ५ मास १५ दिन; केवलज्ञान तिथि=वैशाख शु.१०; केवलीकाल= २९ वर्ष ५ मास २० दिन; निर्वाण तिथि = कार्तिक कृ. १५ में स्वाति नक्षत्र। भगवान् के निर्वाण होने के पश्चात् शेष बचा चौथा काल = ३ वर्ष ८ मास १५ दिन। इस काल को वर्धमान जिनेन्द्र की आयु में मिला देने पर चतुर्थकाल में ७५ वर्ष १० दिन शेष रहने पर भगवान् का स्वर्गावतरण होने का काल प्राप्त होता है। (क.पा.१/१-१/५८-६२/टीका व गा.२१-३१/७६-८१)। - भगवान् की आयु आदि सम्बन्धी दृष्टिभेद का समन्वय
ध.९/४,१,४४/१२६/५ दोसु वि उवएसेसु को एत्थ समंजसो, एत्थ ण बाहइ जिब्भमेलाइरियवच्छओ; अलद्धोवदेसत्तादो दोण्णमेक्कस्स बाहाणुवलंभादो। किन्तु दोसु एक्केण होदव्वं। तं जाणिय वत्तव्वं। = उक्त दो उपदेशों में से कौन-सा उपदेश यथार्थ है, इस विषय एलाचार्य का शिष्य (वीरसेन स्वामी) अपनी जीभ नहीं चलाता, क्योंकि, न तो इस विषय का कोई उपदेश प्राप्त है और न दोनों में से एक में कोई बाधा ही उत्पन्न होती है। किन्तु दोनों में से एक ही सत्य होना चाहिए। उसे जानकर कहना उचित है। (क.पा./१-१-/६३/८१/१२)।
- वीर निर्वाण संवत् सम्बन्धी– देखें - इतिहास / २ / २ ।
- भगवान् के पूर्व भवों का परिचय
म.पु./७४/श्लोक नं.- ‘‘दूरवर्ती पूर्वभव नं. १ में पुरुरवा भील थे। १४-१६।
- नं. २ में सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। २०-२२।
- नं. ३ में भरत का पुत्र मरीचि कुमार।५१-६६।
- नं. ४ में ब्रह्म स्वर्ग में देव।६७।
- नं. ५ में जटिल ब्राह्मण का पुत्र।६८।
- नं. ६ में सौधर्म स्वर्ग में देव।६९।
- नं. ७ में पुण्यमित्र ब्राह्मण का पुत्र।७१।
- नं. ८ में सौधर्म स्वर्ग में देव।७२-७३।
- नं. ९ में अग्निसह ब्राह्मण का पुत्र।७४।
- नं. १० में ७ सागर की आयुवाला देव।७५।
- नं. ११ में अग्निमित्र ब्राह्मण का पुत्र।७६।
- नं. १२ में माहेन्द्र स्वर्ग में देव।७६।
- नं. १३ में भारद्वाज ब्राह्मण का पुत्र।७७।
- नं. १४ में माहेन्द्र स्वर्ग में देव।७८।
- तत्पश्चात् अनेकों त्रस स्थावर योनियों में असंख्यातों वर्ष भ्रमण करके वर्तमान से पहले पूर्वभव नं. १८ में स्थावर नामक ब्राह्मण का पुत्र हुआ।७९-८३।
- पूर्वभव नं. १७ में महेन्द्र स्वर्ग में देव।८५।
- पूर्वभव नं.१६ में विश्वनन्दी नामक राजपुत्र हुआ।८६-११७।
- पूर्वभव नं. १५ में महाशुक्र स्वर्ग में देव।११८-१२०।
- पूर्वभव नं. १४ में त्रिपृष्ठ नारायण।१२०-१६७।
- पूर्वभव नं. १३ में सप्तम नरक का नारकी।१६७।
- पूर्वभव नं. १२ में सिंह।१६९।
- पूर्वभव नं. ११ में प्रथम नरक का नारकी।१७०।
- पूर्वभव नं. १० में सिंह।१७१-२१९।
- पूर्वभव नं. ९ में सिंहकेतु नामक देव।२१९।
- पूर्वभव नं. ८ में कनकोज्ज्वल नामक विद्याधर।२२०-२२९।
- पूर्वभव नं. ७ में सप्तम स्वर्ग में देव।२३०।
- पूर्वभव नं. ६ में हरिषेण नामक राजपुत्र।२३२-२३३।
- पूर्वभव नं. ५ में महाशुक्र स्वर्ग में देव।२३४।
- पूर्वभव नं. ४ में प्रियमित्र नामक राजपुत्र।२३४-२४०।
- पूर्वभव नं. ३ में सहस्रार स्वर्ग में सूर्यप्रभ नामक देव।२४१।
- पूर्वभव नं. २ में नन्दन नामक सज्जनपुत्र।२४२-२५१।
- पूर्वभव नं. १ में अच्युत स्वर्ग में अहमिन्द्र।२४६। वर्तमान भव में २४वें तीर्थंकर महावीर हुए।२५१। (युगपत् सर्वभव–देखें - म .पु./७६/५३४)।
- भगवान् के कुल, संघ आदि का विशेष परिचय– देखें - तीर्थंकर / ५ ।