माध्यस्थ्य
From जैनकोष
स.सि./७/११/३४९/८ रागद्वेषपूर्वकपक्षपाताभावो माध्यस्थ्यम्। = रागद्वेषपूर्वक पक्षपात का न करना माध्यस्थ्य है। (रा.वा./७/११/४/५३८/२१)।
देखें - सामायिक / १ (माध्यस्थ, समता, उपेक्षा, वैराग्य, साम्य, अस्पृह, शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्र, धर्म यह सब एकार्थवाचक शब्द हैं। ... (क्रोधी, पापी, मांसाहारी) व नास्तिक आदि जनों में माध्यस्थभाव होना उपेक्षा कहलाती है।