मानस्तंभ
From जैनकोष
- मानस्तम्भ स्वरूप या रचना
ति.प./४/गा. का भावार्थ―
- समवशरण की मानस्तम्भ भूमियों के अभ्यन्तर भाग में कोट होते हैं।७६२। जिनके भीतर अनेकों वनखण्ड, देवों के क्रीड़ा नगर, वन, वापियाँ आदि शोभित हैं।७६३-७६५। उनके अभ्यन्तर भाग में पुन: कोट होते हैं, जिनके मध्य एक के ऊपर एक तीन पीठ हैं।७६७-७६८। प्रथम पीठ की ऊँचाई भगवान् ऋषभदेव के समवशरण में २४/३ धनुष। इसके आगे नेमिनाथ पर्यन्त प्रत्येक में १/३ धनुष की हानि होती गयी है। पार्श्वनाथ के समवशरण में इसकी ऊँचाई ५/६ धनुष और वर्धमान भगवान् के समवशरण में २/३ धनुष है। द्वितीय व तृतीय पीठों की ऊँचाई समान होती हुई सर्वत्र प्रथम पीठ से आधी है।७६९-७७०। इन तीनों पीठों की चारों दिशाओं में सीढियाँ हैं। प्रथम पीठ पर आठ-आठ और शेष दोनों पर चार-चार हैं।७७१। तृतीय पीठ का विस्तार ३०००/३ धनुष से प्रारम्भ होकर आगे प्रत्येक तीर्थ में १२५/३ कम होता गया, पार्श्वनाथ के समवशरण में ६२५/६ और वर्धमान भगवान् के समवशरण में ५००/६ धनुष था।७७३-७७४।
- तृतीय पीठ पर मानस्तम्भ होते हैं। जिनकी ऊँचाई अपने-अपने तीर्थंकर की ऊँचाई से १२ गुणी होती है। भगवान् ऋषभनाथ के समवशरण में मानस्तम्भ का बाहल्य २३९५२ धनुष प्रमाण था। पीछे प्रति तीर्थंकर ९९८ धनुष कम होते-होते भगवान् पार्श्वनाथ के मानस्तम्भ का बाहल्य २४९५/२४ धनुष प्रमाण था। और भगवान् वर्द्धमान के मानस्तम्भ का ४९९ धनुष प्रमाण था।७७५-७७७। सभी मानस्तम्भ मूल भाग में वज्रद्वारों से युक्त होते हैं और मध्यभाग में वृत्ताकार होते हैं।७७८-७७९। ऊपर से ये चारों ओर चमर, घण्टा आदि से विभूषित तथा प्रत्येक दिशा में एक-एक जिन प्रतिमा से युक्त होते हैं।७८०-७८१। इनके तीन-तीन कोट होते हैं। कोटों के बाहर चारों दिशाओं में वीथियाँ व द्रह होते हैं जो कमलों व कुण्डों से शोभित होते हैं।७८२-७९१। (इसका नकशा–देखें - समवशरण चित्र सं . ४) नोट–
- (मानस्तम्भ के अतिरिक्त सर्व ही प्रकार के देवों के भवनों में तथा अकृत्रिम चैत्यालयों में भी उपरोक्त प्रकार ही मानस्तम्भ होते हैं–तहाँ भवनवासियों के भवनों के लिए–(देखें - त्रि .सा.२१६; व्यन्तर देवों के भवनों के लिए–देखें - त्रि .सा./२५५; अकृत्रिम चैत्यालयों के लिए–देखें - त्रि .सा./१००३-१०१२)।
- मानस्तम्भ नाम की सार्थकता
ति.प./४/७८२ माणुल्लासयमिच्छा वि दूरदो दंसणेण थंभाणं। जं होंति गलिदमाणा माणत्थंभं ति तं भणिदं।७८२। = चूँकि दूर से ही मानस्तम्भों के देखने से मान से युक्त मिथ्यादृष्टि लोग अभिमान से रहित हो जाते हैं, इसलिए इनको मानस्तम्भ कहा गया है।