व्यंतरों की देवियों का निर्देश
From जैनकोष
- व्यंतरों की देवियों का निर्देश
- १६ इन्द्रों की देवियों के नाम व संख्या
(ति.प./६/३५-५४); (त्रि.सा./२५८-२७८)।
- १६ इन्द्रों की देवियों के नाम व संख्या
नं. |
इन्द्र का नाम |
गणिका |
वल्लभिका |
||
नं.१ |
नं.२ |
नं.१ |
नं.२ |
||
१ |
किंपुरुष |
मधुरा |
मधुरालापा |
अवतंसा |
केतुमती |
२ |
किन्नर |
सुस्वरा |
मृदभाषिणी |
रतिसेना |
रतिप्रिया |
३ |
तत्सपुरुष |
पुरुषाकांता |
सौम्या |
राहिणी |
नवमी |
४ |
महापुरुष |
पुरुषदर्शिनी |
भोगा |
ह्वी |
पुष्पवती |
५ |
महाकाय |
भोगवती |
भुजगा |
भोगा |
भोगवती |
६ |
अतिकाय |
भुजगप्रिया |
विमला |
आनन्दिता |
पुष्पगंधी |
७ |
गीतरति |
सुघोषा |
अनिन्दिता |
सरस्वती |
स्वरसेना |
८ |
गीतरस |
सुस्वरा |
सुभद्रा |
नन्दिनी |
प्रियदर्शना |
९ |
मणिभद्र |
भद्रा |
मालिनी |
कुन्दा |
बहुपुत्रा |
१० |
पूर्णभद्र |
पद्मालिनी |
सर्वश्री |
तारा |
उत्तमा |
११ |
भीम |
सर्वसेना |
रूद्रा |
पद्मा |
वसुमित्रा |
१२ |
महाभीम |
रुद्रवती |
भूता |
रत्नाढया |
कंचनप्रभा |
१३ |
स्वरूप |
भूतकान्ता |
महावाह |
रूपवती |
बहरूपा |
१४ |
प्रतिरूप |
भूतरक्ता |
अम्बा |
सुमुखी |
सुसीमा |
१५ |
काल |
कला |
रसा |
कमला |
कमलप्रभा |
१६ |
महाकाल |
सुरसा |
सदर्शनिका |
उत्पला |
सदर्शना |
- श्री ह्वी आदि देवियों का परिवार
ति.प./४/गा. का भावार्थ - हिमवान् आदि ६ कुलधर पर्वतों के पद्म आदि ६ ह्रदों में श्री आदि ६ व्यंतर देवियाँ सपरिवार रहती हैं। तहाँ श्री देवी के सामानिकदेव ४००० (गा. १६७४); त्रायस्त्रिंश १०८ (गा. १६८६); अभ्यंतर पारिषद ३२००० (गा. १६७८); मध्यम पारिषद ४०,००० (गा. १६७६) बाह्य पारिषद ४८००० (गा. १६८०); आत्मरक्ष १६००० (गा. १६७६); सप्त अनीक में प्रत्येक की सात-सात कक्षा हैं। प्रथम कक्षा में ४००० तथा द्वितीय आदि उत्तरोंत्तर दूने-दूने हैं। (गा. १६८३)। ह्वी देवी का परिवार श्री के परिवार से दूना है (गा. १७२९)। (धृतिका ह्वी से भी दूना है।) कीर्तिका धृति के समान है। (गा. २३३३ बुद्धि का कीर्ति से आधा अर्थात् ह्वी के समान। (गा. २३४५) और लक्ष्मी का श्री के समान है (गा. २३६१)। - (विशेष देखें - लोक / ३ / ६ )।