व्यवसाय
From जैनकोष
न्या.वि./वृ./१/७/१४०/१७ अवसायोऽधिगमस्तदभावो व्यवसायो विशब्दस्याभावार्थत्वात् विमलादिवत् । = अधिगम अर्थात् ज्ञान को अवसाय कहते हैं । उसका अभाव व्यवसाय है, क्योंकि ‘वि’ उपसर्ग अभावार्थक है, जैसे ‘विमल’ का अर्थ मल रहित है ।
द्र.सं./४२/१८१/४ व्यवसायात्मकं निश्चयात्मकमित्यर्थः । = व्यवसायात्मक अर्थात् निश्चयात्मक ।
देखें - अवाय –(अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति, आमुंडा और प्रत्यामुंडा–ये पर्यायवाची नाम हैं ।)
- कृषि व्यवसाय की उत्तमता– देखें - सावद्य / ६ ।