जिनगुण संपत्ति व्रत
From जैनकोष
इस व्रत की तीन विधि है–उत्तम, मध्यम व जघन्य,
- उत्तम विधि―अर्हन्त भगवान् के
- जन्म के १० अतिशयों की १० दशमियाँ;
- केवलज्ञान के १० अतिशयों की दश दशमियाँ;
- देवकृत १४ अतिशयों की १४ चतुर्दशियाँ;
- ८ प्रातिहार्यों की ८ अष्टमियाँ;
- षोडशकारण भावनाओं की १६ प्रतिपदाएँ;
- पाँच कल्याणकों की ५ पंचमियाँ; इस प्रकार ६३ तिथियों के ६३ उपवास १० मास में पूरे करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। (ह.पु./३४/१२२); (व्रत विधान संग्रह/पृ.६४); (किशनसिंह क्रियाकोश)।
- मध्यम विधि–६६ दिन में निम्नक्रम से ३६ उपवास व ३० पारणा करे। ‘ओं ह्रीं अर्हन्त परमेष्ठिने नम:’ इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। क्रम–(;व,) के स्थान पर पारणा समझना–२,१,१,१,१,१;२,१,१,१,१,१;२,१,१,१,१,१; २,१,१,१,१,१;२,१,१,१,१,१। (वर्द्धमान पुराण); (व्रत विधान संग्रह/पृ.६५)।
- जघन्य विधि–उपरोक्त ६३ गुणों के उपलक्ष्य में ६३ दिन तक एकाशना करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। (व्रत विधान संग्रह/पृ.६६); (किशन सिंह क्रियाकोश)।