तम:प्रभा
From जैनकोष
लक्षण व नाम की सार्थकता स.सि./३/१/२०१/९ तम:प्रभासहचरिता भूमिस्तम:प्रभा:। =जिसकी प्रभा अन्धकार के समान है वह तम:प्रभा भूमि है। (ति.पं./२/२१); (रा.वा./३/१/३/१५९/१९)
रा.वा./३/१/४-६/१५९/२१ तम: प्रभेति विरुद्धमिति चेत्; न; स्वात्मप्रभोपपत्ते:।४। ...न दीप्तिंरूपैव प्रभा...द्रव्याणां स्वात्मैव मृजा प्रभा यत्संनिधानात् मनुष्यादीनामयं संव्यवहारो भवति स्निग्धकृष्णभ्रमिदं रूक्षकृष्णप्रभमिदमिति, ततस्तमसोऽपि स्वात्मैव कृष्णा प्रभा अस्तीति नास्ति विरोध:। बाह्यप्रकाशापेक्षा सेति चेत्; अविशेषप्रसङ्ग स्यात् । अनादिपारिणामिकसंज्ञानिर्देशाद्वा इन्द्रगोपवत् ।५। भेदरूढिशब्दानामगमकत्वमवयवार्थाभावादिति चेत्; न; सूत्रस्य प्रतिपादनोपायत्वात् । =प्रश्न–तम: और प्रभा कहना यह विरुद्ध है ? उत्तर–नहीं; तम की एक अपनी आभा होती है। केवल दीप्ति का नाम ही प्रभा नहीं है, किन्तु द्रव्यों का जो अपना विशेष विशेष सलोनापन होता है, उसी से कहा जाता है कि यह स्निग्ध कृष्णप्रभावाला है, यह रूक्ष कृष्ण प्रभावाला है। जैसे–मखमली कीड़े की ‘इन्द्रगोप’ संज्ञा रूढ़ है, इसमें व्युत्पत्ति अपेक्षित नहीं है। उसी तरह तम:प्रभा आदि संज्ञाएँ अनादि पारिणामिकी रूढ़ समझनी चाहिए। यद्यपि ये रूढ़ शब्द हैं फिर भी ये अपने प्रतिनियत अर्थों को रखती हैं।
- तम:प्रभा पृथिवी का आकार व विस्तारादि– देखें - नरक / ५ / ११ ।
- तम:प्रभा पृथिवी का नकशा– देखें - लोक / २ / ८ ।
- अपर नाम मघवा– देखें - नरक / ५ ।