नि:श्रेयस
From जैनकोष
र.क.श्रा./१३१ जन्मजरामयमरणै: शोकैर्दु:खैर्भयैश्च परिमुक्तं। निर्वाणं शुद्धसुखं नि:श्रेयसमिष्यते नित्यं।१३१। =जन्म जरा मरण रोग व शोक के दु:खों से और सप्त भयों से रहित अविनाशी तथा कल्याणमय शुद्ध सुख नि:श्रेयस कहा जाता है। ति.प./१/४९ सोक्खं तित्थपराणं कप्पातीदाण तह य इंदियादीदं। अतिसयमादसमुत्थं णिस्सेयसमणुवमं परमं।४९। तीर्थंकर (अर्हन्त) और कल्पातीत अर्थात् सिद्ध, इनके अतीन्द्रिय, अतिशयरूप, आत्मोत्पन्न, अनुपम और श्रेष्ठ सुख को नि:श्रेयस सुख कहते हैं।