शरण
From जैनकोष
रा.वा./९/७/२/६००/१५
शरणं द्विविधं-लौकिकं लोकोत्तरं चेति। तत्प्रत्येकं त्रिधा-जीवाजीवमिश्रकभेदात् । तत्र राजा देवता वा लौकिकं जीवशरणम्, प्राकारादि अजीवशरणम् । ग्रामनगरादि मिश्रकम् । पञ्च गुरवो लोकोत्तरजीवशरणम्, तत्प्रतिबिम्बाद्यजीवशरणम्, सधर्मोपकरणसाधुवर्णो मिश्रकशरणम् ।
शरण दो प्रकार का है - एक लौकिक दूसरा लोकोत्तर। तथा वे दोनों ही जीव, अजीव और मिश्रक के भेद से तीन-तीन प्रकार के हैं।
- लौकिक
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राजा देवता आदि लौकिक जीवशरण हैं।
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कोट, शहर, पनाह आदि लौकिक अजीव शरण हैं।
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और कोट खाई सहित गाँव नगर आदि लौकिक मिश्र शरण हैं।
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- लोकोत्तर
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पाँचों परमेष्ठी लोकोत्तर जीव शरण है।
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इन अरहंत आदि के प्रतिबिंब आदि लोकोत्तर अजीव शरण हैं।
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धर्म सहित साधुओं का समुदाय तथा उनके उपकरण आदि लोकोत्तर मिश्र शरण हैं। (चा.सा./१७८/४)
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