स्पृहा
From जैनकोष
न्या.सू./टी./टी./४/१/३/२३०/१२ अस्वपरस्वादानेच्छा स्पृहा। =धर्म से अविरुद्ध किसी पदार्थ के पाने की इच्छा करनी स्पृहा कहलाती है।
न्या.सू./टी./टी./४/१/३/२३०/१२ अस्वपरस्वादानेच्छा स्पृहा। =धर्म से अविरुद्ध किसी पदार्थ के पाने की इच्छा करनी स्पृहा कहलाती है।