शास्त्र
From जैनकोष
- कल्प शास्त्रादि का लक्षण
भ.आ./वि./१३०/३०७/१४ कल्प्यते अभिधीयते येन अपराधानुरूपो दण्ड: स कल्प:।
भ.आ./वि./६१२/८१२/७ स्त्रीपुरुष लक्षणं निमित्तं, ज्योतिर्ज्ञानं, छन्द: अर्थशास्त्रं, वैद्यं, लौकिकवैदिकसमयाश्च बाह्यशास्त्राणि। =१. जिसमें अपराध के अनुरूप दण्ड का विधान कहा है उस शास्त्र को कल्पशास्त्र कहते हैं। २. स्त्री पुरुष के लक्षणों का वर्णन करने वाले शास्त्र को निमित्तशास्त्र कहते हैं। ३. ज्योतिर्ज्ञान, छन्दशास्त्र, अर्थशास्त्र, वैद्यक शास्त्र, लौकिक शास्त्र, मंत्रवाद आदि शास्त्रों को बाह्यशास्त्र कहते हैं।
मू.आ./भाषा/१४४। ४. व्याकरण गणित आदि लौकिक शास्त्र हैं। ५. सिद्धान्त शास्त्र वैदिक शास्त्र कहे जाते हैं। ६. स्याद्वाद न्याय शास्त्र व अध्यात्म शास्त्र सामायिक शास्त्र जानना।
- शास्त्र लिखने व पढ़ने से पूर्व षट् आवश्यक
ध.१/गा.१/७ मंगल-णिमित्त-हेउ परिमाणं णाम तह य कत्तारं। वागरिय छ प्पि पच्छा वक्खाणउ सत्थमाइरियो। =मंगल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम, कर्ता इन छह अधिकारों का व्याख्यान करने के पश्चात् आचार्य शास्त्र का व्याख्यान करें/१।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- शास्त्र सामान्य का लक्षण व विषय - देखें - आगम।
- शास्त्र व देवपूजा में कथंचित् समानता - देखें - पूजा / ३ ।
- शास्त्र में कथंचित् देवत्व - देखें - देव / I / १ ।
- शास्त्र श्रद्धान का सम्यग्दर्शन में स्थान - देखें - सम्यग्दर्शन / II / १ ।
- शास्त्रार्थ के विधि निषेध सम्बन्धी - देखें - वाद।