शिक्षा व्रत
From जैनकोष
भ.आ./मू./२०८२-२०८३ भोगाणं परिसंखा सामाइयमतिहिसंविभागो य। पोसहविधी य सव्वो चदुरो सिक्खाउ बुत्ताओ।२०८२। आसुक्कारे मरणे अव्वोच्छिण्णाए जोविदासाए। णादीहि वा अमुक्को पच्छिमसल्लेहणमंकासी।२०८३। =भोगोपभोग परिमाण, सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि संविभाग ये चार शिक्षाव्रत हैं।२०८२। इन व्रतों को पालने वाला गृहस्थ सहसा मरण आने पर जीवित की आशा रहने पर, जिसके बन्धुगण ने दीक्षा लेने की सम्मति नहीं दी है ऐसे प्रसंग में सल्लेखना धारण करता है। (स.सि./७/२१,२२/३५९,३६३/७,१)।
र.क.श्रा./९१ देशावकाशिकं वा सामायिकं प्रोषधोपवासो वा। वैयावृत्यं शिक्षाव्रतानि चत्वारि शिष्टानि।९१। =देशावकाशिक तथा सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्य ये चार शिक्षाव्रत कहे गये हैं।
चा.पा./मू./२६ सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसइं भणियं। तइयं च अतिहिपुज्ज चउत्थ सल्लेहणा अंते। =पहला सामायिक शिक्षाव्रत, दूसरा प्रोषधव्रत, तीसरा अतिथिपूजा और चौथा शिक्षाव्रत अन्त समय सल्लेखना है।२६।
वसु.श्रा./२१७-२१९,२७० भोगविरति, परिभोग-निवृत्ति तीसरा अतिथि संविभाग व चौथा सल्लेखना नाम का शिक्षाव्रत होता है।