आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश
From जैनकोष
आनुपूर्वी व स्तिबुक संक्रमण
१. आनुपूर्वी संक्रमण का लक्षण
ल.सा./जी.प्र./२४९/३०५/१ स्त्रीनपुंसकवेदप्रकृत्योर्द्रव्यं नियमेन पुंवेद एव संक्रामति। पुंवेदहास्यादिषण्णोकषायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोधद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनक्रोध एव संक्रामति। संज्वलनक्रोधाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानमानद्वयद्रव्यं नियमेन संज्वलनमाने एव संक्रामति संज्वलनमायाप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानलोभद्वयद्रव्यंसंज्वलन लोभे एव नियमत: संक्रामति इत्यानुपूर्व्या संक्रमो। = जो स्त्री, नपुंसक वेद प्रकृति के द्रव्य को तो पुरुषवेद में ही संक्रमण करता है। और पुरुष, हास्यादि छह, तथा अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान क्रोध का संज्वलन क्रोध में, संज्वलन क्रोध, अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान मान का संज्वलन मान ही संक्रमण करता है। और संज्वलन मान व अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यन माया का संज्वलन माया में ही संक्रमण करता है। संज्वलन माया अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान लोभ का संज्वलन लोभ ही में नियम से संक्रमण होता है, अन्यथा नहीं होता है, यह आनुपूर्वी संक्रमण है।
२. स्तिबुक संक्रमण का लक्षण
ल.सा./जी.प्र./२७३/३३०/९ संज्वलनक्रोधस्य समयो नोच्छिष्टावलिमात्रनिषेकद्रव्यमपि संज्वलनमानस्योदयावल्यां समस्थितिनिषेकेषु प्रतिसमयमेकैकनिषेकक्रमेण संक्रम्य उदयमागमिष्यति। संज्वलनक्रोधोच्छिष्टावलिनिषेका: मानोदयावलिनिषेकेषु संक्रम्य अनन्तरसमयेषूदयमिच्छन्तीति तात्पर्यम् । अयमेव थिउक्कसंक्रम इति भण्यते। =संज्वलन क्रोध का एक समय कम उच्छिष्टावलिमात्र निषेक द्रव्य भी, अपनी समान स्थिति लिये जे संज्वलन मान की उदयावली के निषेक उनमें समय-समय एक-एक निषेक के अनुक्रम से संक्रमण होकर अनन्तर समय में उदय होता है। तात्पर्य यह है कि उच्छिष्टावलि प्रमाण संज्वलन क्रोध का द्रव्य मान की उदयावली निषेकों में संक्रमण करके अनन्तर समय में उदय में आते हैं। यह ही थिउक्क (स्तिबुक) संक्रमण है।
ध.५/१,७,१८/२११/८ विशेषार्थ - गति जाति आदि पिंड प्रकृतियों में से जिस किसी विवक्षित एक प्रकृति के उदय आने पर अनुदय प्राप्त शेष प्रकृतियों का जो उसी प्रकृति में संक्रमण होकर उदय आता है, उसे स्तिबुक संक्रमण कहते हैं। जैसे - एकेन्द्रिय जीवों के उदय प्राप्त एकेन्द्रिय जाति नामकर्म में अनुदय-प्राप्त द्वीन्द्रिय जाति आदि का संक्रमण होकर उदय में आना।