श्रीविजय
From जैनकोष
म.पु./६१/श्लोक त्रिपृष्ठ नारायण का पुत्र था (१५३)। एक बार राज्य सिंहासन पर वज्रपात गिरने की भविष्यवाणी सुनकर (१७२-१७३) सिंहासन पर स्फटिक मणि की प्रतिमा विराजमान कर दी। और स्वयं चैत्यालय में जाकर शान्ति विधान करने लगा। (२१९-२२१)। फिर सातवें दिन वज्रपात यक्षमूर्ति पर पड़ा (२२२)। एक समय इनकी स्त्री को अशनिघोष विद्याधर उठाकर ले गया और स्वयं सुतारा का वेष बनाकर बैठ गया (२३३-२३४) तथा बहाना किया कि मुझे सर्प ने डस लिया, तब राजा ने चिता की तैयारी की (२३५-२३७)। इसके साले अमिततेज के आश्रित राजा संभिन्न ठीक-ठीक वृत्तान्त जान (२३८-२४६) अशनिघोष के साथ युद्ध किया (६८-८०)। अन्त में शत्रु समवशरण में चला गया, तब वहीं पर इन्होंने अपनी स्त्री को प्राप्त किया (२८४-२८५)। अन्त में समाधिमरण कर तेरहवें स्वर्ग में मणिचूल नामक देव हुआ (४१०-४११)। यह शान्तिनाथ भगवान् के प्रथम गणधर चक्रायुध का पूर्व का १०वाँ भव है। - देखें - चक्रायुध।