अष्टसहस्त्री
From जैनकोष
आ. समन्तभद्र (ई. श. २) द्वारा रचित आप्तमीमांसा अपरनाम देवागमस्तोत्रकी एक वृत्ति अष्टशती नामकी आ. अकलंक भट्टने रची थी। उसपर ही आ. विद्यानन्दने (ई. ७७५-८४०) ८००० श्लोक प्रमाण वृत्ति रची। यह कृति इतनी गम्भीर व कठिन है कि बड़े बड़े विद्वान् भी इसे अष्टसहस्रीकी बजाय कष्टसहस्री कहते हैं।
(तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, पृष्ठ संख्या २/३६४)।