समवसरण
From जैनकोष
अर्हंत भगवान् के उपदेश देने की सभा का नाम समवसरण है, जहाँ बैठकर तिर्यंच मनुष्य व देव‒पुरुष व स्त्रियाँ सब उनकी अमृतवाणी से कर्ण तृप्त करते हैं। इसकी रचना विशेष प्रकार से देव लोग करते हैं। इसकी प्रथम सात भूमियों में बड़ी आकर्षक रचनाएँ, नाट्यशालाएँ, पुष्प वाटिकाएँ, वापियाँ, चैत्य वृक्ष आदि होते हैं। मिथ्यादृष्टि अभव्यजन अधिकतर इसी के देखने में उलझ जाते हैं। अत्यन्त भावुक व श्रद्धालु व्यक्ति ही अष्टमभूमि में प्रवेशकर साक्षात् भगवान् के दर्शनों से तथा उनकी अमृतवाणी से नेत्र, कान व जीवन सफल करते हैं।
१. समवसरण का लक्षण
म.पु./३३/७३ समेत्यावसरावेक्षास्तिष्ठन्त्यस्मिन् सुरासुरा:। इति तज्झैर्निरुक्तं तत्सरणं समवादिकम् ।७३। =इसमें समस्त सुर और असुर आकर दिव्यध्वनि के अवसर की प्रतीक्षा करते हुए बैठते हैं, इसलिए जानकार गणधरादि देवों ने इसका समवसरण ऐसा सार्थक नाम कहा है।७३।
२. समवसरण में अन्य केवली आदि के उपदेश देने का स्थान
ह.पु./५७/८६-८९ तत: स्तम्भसहस्रस्थो मण्डपोऽस्ति महोदय:। नाम्ना मूर्तिमतिर्यत्र वर्तते श्रुतदेवता।८६। तां कृत्वा दक्षिणे भागे धीरैर्बहुश्रुतेर्वृत:। श्रुतं व्याकुरुते यत्र श्रायसं श्रुतकेवली।८७। तदर्धमानाश्चत्वारस्तत्परीवारमण्डपा:। आक्षेपण्यादयो येषु कथ्यन्ते कथकै: कथा।८८। तत्प्रकीर्णकवासेषु चित्रेष्वाचक्षते स्फुटम् । ऋषय: स्वेष्टमर्थिभ्य: केवलादिमहर्द्धय:।८९। =[भवनभूमि नाम की सप्तम भूमि में स्तूपों से आगे एक पताका लगी हुई है] उसके आगे १००० खम्भों पर खड़ा हुआ महोदय नाम का मण्डप है, जिसमें मूर्तिमती श्रुतदेवता विद्यमान रहती है।८६। उस श्रुतदेवता को दाहिने भाग में करके बहुश्रुत के धारक अनेक धीर वीर मुनियों से घिरे श्रुतकेवली कल्याणकारी श्रुत का व्याख्यान करते हैं।८७। महोदय मण्डप के आधे विस्तारवाले चार परिवार मण्डप और हैं, जिनमें कथा कहने वाले पुरुष आक्षेपिणी आदि कथाएँ कहते रहते हैं।८८। इन मण्डपों के समीप में नाना प्रकार के फुटकर स्थान भी बने रहते हैं, जिनमें बैठकर केवलज्ञान आदि महाऋद्धियों के धारक ऋषि इच्छुकजनों के लिए उनकी इष्ट वस्तुओं का निरूपण करते हैं।८९। (हरिषेण कृत कथा कोष। कथा नं.६०/श्लो.१५५-१६०)
३. मिथ्यादृष्टि अभव्य जन श्रीमण्डप के भीतर नहीं जाते
ति.प./४/९३२ मिच्छाइट्ठिअभव्वा तेसुमसण्णी ण होंति कइआइं। तह य अणज्झवसाया संदिद्धा विविहविवरीदा।९३२। =इन (बारह) कोठों में मिथ्यादृष्टि, अभव्य और असंज्ञी जीव कदापि नहीं होते तथा अनध्यवसाय से युक्त, सन्देह से संयुक्त और विविध प्रकार की विपरीतताओं से सहित जीव भी नहीं होते हैं।९३२।
ह.पु./५७/१०४ भव्यकूटाख्यया स्तूपा भास्वत्कूटास्ततोऽपरे। यानभव्या न पश्यन्ति प्रभावान्धीकृतेक्षणा:।१०४। =[सप्तभूमि में अनेक स्तूप हैं। उनमें सर्वार्थसिद्धि नाम के अनेकों स्तूप हैं।] उनके आगे देदीप्यमान शिखरों से युक्त भव्यकूट नाम के स्तूप रहते हैं, जिन्हें अभव्य जीव नहीं देख पाते। क्योंकि उनके प्रभाव से उनके नेत्र अन्धे हो जाते हैं।१०४।
४. समवसरण का माहात्म्य
ति.प./४/९२९-९३३ जिणवंदणापयट्टा पल्लासंखेज्जभागपरिमाणा। चेट्ठंति विविहजीवा एक्केक्के समवसरणेसुं।९२९। कोट्ठाणं खेत्तादो जीवक्खेत्तं फलं असंखगुणं। होदूण अपुट्ठ त्ति हु जिणमाहप्पेण गच्छंति।९३०। संखेज्जजोयणाणि बालप्पहुदी पवेसणिग्गमणे। अंतोमुहुत्तकाले जिणमाहप्पेण गच्छंति।९३१। आतंकरोगमरणुप्पत्तीओ वेरकामबाधाओ। तण्हा छहपीडाओ जिणमाहप्पेण ण हवंति।९३३। =एक-एक समवसरण में पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण विविधप्रकार के जीव जिनदेव की वन्दना में प्रवृत्त होते हुए स्थित रहते हैं।९२९। कोठों के क्षेत्र से यद्यपि जीवों का क्षेत्रफल असंख्यातगुणा है, तथापि वे सब जीव जिनदेव के माहात्म्य से एक दूसरे से अस्पृष्ट रहते हैं।९३०। जिनभगवान् के माहात्म्य से बालकप्रभृति जीव प्रवेश करने अथवा निकलने में अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर संख्यातयोजन चले जाते हैं।९३१। इसके अतिरिक्त वहाँ पर जिनभगवान् के माहात्म्य से आतंक, रोग, मरण, उत्पत्ति, बैर, कामबाधा तथा तृष्णा (पिपासा) और क्षुधा की पीड़ाएँ नहीं होती हैं।९३३।
५. समवसरण देवकृत होता है
ति.प./४/७१० ताहे सक्काणाए जिणाण सयलाण समवसरणाणिं। विक्किरियाए धणदो विरएदि विचित्तरूवेहिं।७१०। =सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर विक्रिया के द्वारा सम्पूर्ण तीर्थंकरों के समवसरण को विचित्ररूप से रचता है।७१०।
६. समवसरण का स्वरूप
ति.प./४/गा.का भावार्थ - १. समवसरण के स्वरूप में ३१ अधिकार हैं - सामान्य भूमि, सोपान, विन्यास, वीथी, धूलिशाल, (प्रथमकोट) चैत्यप्रासाद भूमियाँ, नृत्यशाला, मानस्तम्भ, वेदी, खातिकाभूमि, वेदी, लताभूमि, साल (द्वि.कोट), उपवनभूमि, नृत्यशाला, वेदी, ध्वजभूमि, साल (तृतीय-कोट), कल्पभूमि, नृत्यशाला, वेदी, भवनभूमि, स्तूप, साल (चतु.कोट), श्रीमण्डप, ऋषि आदि गण, वेदी, पीठ, द्वि.-पीठ, तृतीय पीठ, और गन्धकूटी।७१२-७१५। २. समवसरण की सामान्य भूमि गोल होती है।७१६। ३. उसकी प्रत्येक दिशा में आकाश में स्थित बीस-बीस हजार सोपान (सीढ़ियाँ) हैं।७२०। ४. इसमें चार कोट, पाँच वेदियाँ, इनके बीच में आठ भूमियाँ, और सर्वत्र अन्तर भाग में तीन-तीन पीठ होते हैं। यह उसका विन्यास (कोटों आदि का सामान्य निर्देश) है।७२३। (देखें - चित्र सं .१ पृष्ठ ३३३) ५. प्रत्येक दिशा में सोपानों से लेकर अष्टम भूमि के भीतर गन्धकुटी की प्रथम पीठ तक, एक-एक बीथी (सड़क) होती है।७२४। वीथियों के दोनों बाजुओं में वीथियों जितनी ही लम्बी दो वेदियाँ होती हैं।७२८। आठों भूमियों के मूल में बहुत से तोरणद्वार होते हैं।७३१। ६. सर्वप्रथम धूलिशाल नामक प्रथम कोट है।७३३। इसकी चारों दिशाओं में चार तोरण द्वार हैं।७३४। (देखें - चित्र सं .२ पृष्ठ ३३३) प्रत्येक गोपुर (द्वार) के बाहर मंगल द्रव्य नवनिधि व धूप घट आदि युक्त पुतलियाँ स्थित हैं।७३७। प्रत्येक द्वार के मध्य दोनों बाजुओं में एक-एक नाट्यशाला है।७४३। (देखें - चित्र सं .३ पृष्ठ ३३३) ज्योतिषदेव इन द्वारों की रक्षा करते हैं।७४४। ७. धूलिसाल कोट के भीतर चैत्य प्रासाद भूमियाँ हैं (विशेष देखें - वृक्ष )।७५१। जहाँ पाँच-पाँच प्रासादों के अन्तराल से एक-एक चैत्यालय स्थित हैं।७५२। इस भूमि के भीतर पूर्वोक्त चार वीथियों के पार्श्वभागों में नाट्यशालाएँ हैं।७५६। जिनमें ३२ रंगभूमियाँ हैं। प्रत्येक रंगभूमि में ३२ भवनवासी कन्याएँ नृत्य करती हैं।७५८-७५९। ८. प्रथम (चैत्यप्रासाद) भूमि के बहुमध्य भाग में चारों वीथियों के बीचोबीच गोल मानस्तम्भ भूमि हैं।७६१। (विशेष देखें - मानस्तम्भ। चित्र सं .४ पृष्ठ ३३३) ९. इस प्रथम चैत्यप्रासादभूमि से आगे, प्रथम वेदी है, जिसका सम्पूर्ण कथन धूलिशालकोटवत् जानना।७९२-७९३। १०. इस वेदी से आगे खातिका भूमि है।७९५। जिसमें जल से पूर्ण खातिकाएँ हैं।७९६। ११. इससे आगे पूर्व वेदिका सदृश ही द्वितीय वेदिका है।७९९। १२. इसके आगे लताभूमि है, जो अनेकों क्रीड़ा पर्वतों व वापिकाओं आदि से शोभित है।८००-८०१। १३. इसके आगे दूसरा कोट है, जिसका वर्णन धूलिसालवत् है, परन्तु यह यक्षदेवों से रक्षित है।८०२। १४. इसके आगे उपवन नाम की चौथी भूमि है।८०३। जो अनेक प्रकार के वनों, वापिकाओं व चैत्य वृक्षों से शोभित है।८०४-८०५। १५. सब वनों के आश्रित सब वीथियों के दोनों पार्श्व भागों में दो-दो (कुल १६) नाट्यशालाएँ होती हैं। आदि वाली आठ में भवनवासी देवकन्याएँ और आगे की आठ में कल्पवासी देवकन्याएँ नृत्य करती हैं।८१५-८१६। १६. इसके पूर्वसदृश ही तीसरी वेदी है जो यक्षदेवों से रक्षित है।८१७। १७. इसके आगे ध्वज-भूमि है, जिसकी प्रत्येक दिशा में सिंह, गज आदि दस चिह्नों से चिह्नित ध्वजाएँ हैं। प्रत्येक चिह्न वाली ध्वजाएँ १०८ हैं। और प्रत्येक ध्वजा अन्य १०८ क्षुद्रध्वजाओं से युक्त है। कुल ध्वजाएँ=(१०×१०८×४) + (१०×१०८×१०८×४)=४७०८८०। १८. इसके आगे तृतीय कोट है जिसका समस्त वर्णन धूलिसाल कोट के सदृश है।८२७। १९. इसके आगे छठी कल्पभूमि है।८२८। जो दस प्रकार के कल्पवृक्षों से तथा अनेकों वापिकाओं, प्रासादों, सिद्धार्थ वृक्षों (चैत्यवृक्षों) से शोभित है।८२९-८३३।
२०. कल्पभूमि के दोनों पार्श्वभाग में प्रत्येक वीथी के आश्रित चार-चार (कुल १६) नाट्यशालाएँ हैं।८३८। यहाँ ज्योतिष कन्याएँ नृत्य करती हैं।८३९। २१. इसके आगे चौथी वेदी है, जो भवनवासी देवों द्वारा रक्षित है।८४०। २२. इसके आगे भवनभूमियाँ हैं, जिनमें ध्वजा-पताकायुक्त अनेकों भवन हैं।८४१। २३. इस भवनभूमि के पार्श्वभागों में प्रत्येक वीथी के मध्य में जिनप्रतिमाओं युक्त नौ-नौ स्तूप (कुल ७२ स्तूप) हैं।८४४। २४. इसके आगे चतुर्थ कोट है जो कल्पवासी देवों द्वारा रक्षित है।८४८-८४९। २५. इसके आगे अन्तिम श्रीमण्डप भूमि है।८५२। इसमें कुल १६ दीवारें व उनके बीच १२ कोठे हैं।८५३। २६. पूर्वदिशा को आदि करके इन १२ कोठों में क्रम से गणधर आदि मुनिजन; कल्पवासी देवियाँ, आर्यिकाएँ व श्राविकाएँ, ज्योतिषी देवियाँ, व्यन्तर देवियाँ, भवनवासी देवियाँ, भवनवासी देव, व्यन्तरदेव, ज्योतिषीदेव, कल्पवासीदेव, मनुष्य व तिर्यंच बैठते हैं।८५७-८६३। २७. इसके आगे पंचम वेदी है, जिसका वर्णन चौथे कोट के सदृश है।८६४। २८. इसके आगे प्रथम पीठ है, जिस पर बारह कोठों व चारों वीथियों के सन्मुख सोलह-सोलह सीढ़ियाँ हैं।८६५-८६६। इस पीठ पर चारों दिशाओं में सर पर धर्मचक्र रखे चार यक्षेन्द्र स्थित हैं।८७०। पूर्वोक्त बारह के बारह गण इस पीठ पर चढ़कर प्रदक्षिणा देते हैं।८७३। २९. प्रथम पीठ के ऊपर द्वितीय पीठ होती है।८७५। जिसके चारों दिशाओं में सोपान हैं।८७९। इस पीठ पर सिंह, बैल आदि चिह्नों वाली ध्वजाएँ हैं व अष्टमंगल द्रव्य, नवनिधि, धूपघट आदि शोभित हैं।८८०-८८१। ३०. द्वितीय पीठ के ऊपर तीसरी पीठ है।८८४। जिसके चारों दिशाओं में आठ-आठ सोपान हैं।८८६। ३१. तीसरी पीठ के ऊपर एक गन्धकुटी है, जो अनेक ध्वजाओं से शोभित है।८८७-८८८। गन्धकुटी के मध्य में पादपीठ सहित सिंहासन है।८९३। जिस पर भगवान् चार अंगुल के अन्तराल से आकाश में स्थित है।८९५। (ह.पु./७/१-१६१); (ध./९/४,१,४४/१०९-११३); (म.पु./२२/७७-३१२)। (चित्र सं.५ पृष्ठ ३३४)
* मानस्तम्भ का स्वरूप व विस्तार - देखें - मानस्तम्भ।
* चैत्य वृक्ष का स्वरूप व विस्तार - देखें - वृक्ष । (चित्र सं.६ पृष्ठ ३३४)
७. समवसरण का विस्तार
ति.प./४/७१८ अवसप्पिणिए एदं भणिदं उस्सप्पिणीए विवरीदं। बारस जोयणमेत्ता सा सयलविदेहकत्ताणं।७१८। =यह जो सामान्य भूमि का प्रमाण बतलाया है (देखें - आगे सारणी ) वह अवसर्पिणी काल का है। उत्सर्पिणी काल में इससे विपरीत है। विदेह क्षेत्र के सम्पूर्ण तीर्थंकरों के समवसरण की भूमि बारह योजन प्रमाण ही रहती है।७१८। (अवसर्पिणी काल में जिस प्रकार प्रथम तीर्थ से अन्तिम तीर्थ तक भूमि आदि के विस्तार उत्तरोत्तर कम होते गये हैं उसी प्रकार उत्सर्पिणी काल में वे उत्तरोत्तर बढ़ते होंगे। विदेह क्षेत्र के सभी समवसरणों में ये विस्तार प्रथम तीर्थंकर के समान जानने।)
प्रमाण - ति.प./४/गाथा सं.।
नोट - तीर्थंकरों की ऊँचाई के लिए। देखें - तीर्थंकर / ५ / ३ / २ ,१६।
संकेत - यो.=योजन; को.=कोश; ध.=धनुष; अं=अंगुल।
नाम | गाथा सं. | लम्बाई चौड़ाई या ऊँचाई | प्रथम ऋषभदेव के समवसरण में | २२ वें नेमिनाथ तक क्रमिक हानि | २३ वें पार्श्वनाथ के समवसरण में | २४वें वर्धमान के समवसरण में |
सामान्य भूमि | ८१६ | विस्तार (विशेष देखें - तीर्थंकर / ५ / ३ / ४ -३२) | १२ योजन | २ को. | ५/४ यो. | १ यो. |
सोपान | ७२१ | लम्बाई | २४x२४ यो. | २४ यो. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image002.gif" width="12"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image004.gif" width="12"> को. |
७२२ | चौड़ाई व लम्बाई | १ हाथ | x | १ हाथ | १ हाथ | |
वीथी | ७२४ | चौड़ाई | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image006.gif" width="13"> | सोपानवत् | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | |
७२५ | लम्बाई | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image010.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image012.gif" width="12"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image014.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image016.gif" width="12"> को. | |
वीथी के दोनों बाजुओं में वेदी | ७२९ | ऊँचाई | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image018.gif" width="24"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image020.gif" width="18"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image022.gif" width="18"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image024.gif" width="18"> ध. |
प्रथम कोट | ७४६ | ऊँचाई | स्व स्व तीर्थंकर से चौगुनी | |||
७४८ | मूल में विस्तार | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image026.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image028.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image030.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image032.gif" width="12"> को. | |
तोरण व गोपुर द्वारा | ७४७ | ऊँचाई | कोट से तोरण और उससे गोपुर अधिक-अधिक ऊँचे हैं। | |||
चैत्य व प्रासाद | ७५३ | ऊँचाई | स्व-स्व तीर्थंकर से १२ गुनी | |||
चैत्यप्रासाद भूमि | ७५४ | विस्तार | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image034.gif" width="18"> यो. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image036.gif" width="18"> यो. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image038.gif" width="18"> यो. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image040.gif" width="18"> यो. |
नाट्यशाला | ७५७ | ऊँचाई | स्व-स्व तीर्थंकर से १२ गुनी | |||
प्रथम वेदी | ७९४ | ऊँचाई व विस्तार | प्रथम कोटवत् | |||
खातिका भूमि | ७९७ | विस्तार | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image006.gif" width="13"> प्रथम चैत्यप्रासाद भूमिवत् | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | ||
द्वि.वेदी | ७९९ | विस्तार | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image006.gif" width="13"> प्रथम कोट से दूना<img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | ||
७९९ | ऊँचाई | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image006.gif" width="13"> प्रथम कोटवत्<img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | |||
लताभूमि | ८०१ | विस्तार | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image006.gif" width="13"> चैत्यप्रासाद भूमि से दूना<img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | <img height="22" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image008.gif" width="13"> | ||
द्वि.कोट | ८०२ | ऊँचाई | प्रथम कोटवत् | |||
विस्तार | प्रथम कोट से दूना | |||||
उपवन भूमि | ८१४ | विस्तार | चैत्यप्रासाद भूमि से दूना | |||
उपवनभूमि के भवन | ८१३ | ऊँचाई | स्व-स्व तीर्थंकरों से १२ गुनी | |||
तृतीय वेदी | ८१७ | विस्तार व ऊँचाई | द्वितीय वेदीवत् | |||
ध्वज भूमि | ८२६ | विस्तार | लता भूमिवत् | |||
ध्वजस्तम्भ | ८२१ | ऊँचाई | स्व स्व तीर्थंकरों से १२ गुना | |||
८२२ | विस्तार | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image042.gif" width="18"> अं. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image044.gif" width="12"> अं. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image046.gif" width="12"> अं. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image048.gif" width="12"> अं. | |
तृतीय कोट | ८२७ | विस्तार व ऊँचाई | द्वितीय कोटवत् | |||
कल्प भूमि | ८२८ | विस्तार | ध्वज भूमिवत् | |||
चतुर्थ वेदी | ८४० | विस्तार व ऊँचाई | प्रथम वेदीवत् | |||
भवन भूमि | विस्तार | (कल्पभूमिवत् ?) | ||||
भवनभूमि की भवन पंक्तियाँ | ८४३ | विस्तार | प्रथम वेदी से ११ गुणा | |||
स्तूप | ८४६ | ऊँचाई | चैत्य वृक्षवत् अर्थात् स्व स्व तीर्थंकर से १२ गुणा (देखें - वृक्ष ) | |||
चतुर्थ कोट | ८५० | विस्तार | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image050.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image052.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image054.gif" width="18"> ध. | <img height="31" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image056.gif" width="18"> ध. |
श्रीमण्डप के कोठे | ८५३ | ऊँचाई | स्व स्व तीर्थंकर से १२ गुणी | |||
८५४ | विस्तार | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image058.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image060.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image062.gif" width="18"> को. | <img height="31" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image064.gif" width="24"> ध. | |
पंचम वेदी | ८६४ | विस्तार | चतुर्थ कोट सदृश | |||
प्रथम पीठ | ८६५ | ऊँचाई | मानस्तम्भ के पीठवत् | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image066.gif" width="6"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image068.gif" width="6"> ध. | |
<img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image070.gif" width="12"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image072.gif" width="6"> ध. | |||||
(देखें - मानस्तम्भ ) | ||||||
८६७ | विस्तार | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image074.gif" width="12" > को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image076.gif" width="12"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image078.gif" width="12"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image080.gif" width="6"> को. | |
८७१ | मेखला | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image018.gif" width="24"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image020.gif" width="18"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image022.gif" width="18"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image024.gif" width="18"> ध. | |
द्वि.पीठ | ८७५ | ऊँचाई | ४ ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image080.gif" width="6"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image082.gif" width="6"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image084.gif" width="6"> ध. |
८८२ | विस्तार | <img height="31" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image086.gif" width="18"> को. | <img height="31" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image088.gif" width="12"> को. | <img height="31" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image090.gif" width="18"> को. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image002.gif" width="12"> को. | |
८७७ | मेखला | प्रथम पीठवत् | ||||
तृतीय पीठ | ८८४ | ऊँचाई | द्वितीय पीठवत् | |||
८८५ | विस्तार | प्रथम पीठ से चौथाई | ||||
गन्धकुटी | ८८९ | विस्तार | ६०० ध. | २५ ध. | १२५ ध. | ५० ध. |
८९१ | ऊँचाई | ९०० ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image092.gif" width="18"> ध. | <img height="30" src="file:///C:/Users/chiragj029/Desktop/JSK/JSK 4 - htmls/331-340/clip_image094.gif" width="18"> ध. | ७५ ध. | |
सिंहासन | ८९४ | ऊँचाई | स्व स्व तीर्थंकरों के योग्य |
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