समाधि
From जैनकोष
१. समाधि सामान्य का लक्षण
नि.सा./मू./१२२-१३३ वयणोच्चारणकिरियं परिचत्तं वीयरायभावेण। जो झायदि अप्पाणं परमसमाही हवे तस्स।१२२। संजमणियमतवेण दु धम्मज्झाणेण सुक्कझाणेण। जो झायइ अप्पाणं परमसमाही हवे तस्स।१२३। =वचनोच्चारण की क्रिया परित्याग कर वीतराग भाव से जो आत्मा को ध्याता है, उसे समाधि है।१२२। संयम, नियम और तप से तथा धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान से जो आत्मा को ध्याता है, उसे परम समाधि है।१२३।
प.प्र./मू./२/१९० सयल-वियप्पहं जो विलउ परम-समाहि भणंति। तेण सुहासुह-भावणा मुणि सयलवि मेल्लंति।१९०। =जो समस्त विकल्पों का नाश होना, उसको परमसमाधि कहते हैं, इसी से मुनिराज समस्त शुभाशुभ विकल्पों को छोड़ देते हैं।१९०।
रा.वा./६/१/१२/५०५/२७ युजे: समाधिवचनस्य योग: समाधि: ध्यानमित्यनर्थान्तरम् । =योग का अर्थ समाधि और ध्यान भी होता है।
भ.आ./वि./६७/१९४/८ (समाधि) - समेकीभावे वर्तते तथा च प्रयोग: - संगतं तैलं संगतं घृतमित्यर्थ एकीभूतं तैलं एकीभूतं घृतमित्यर्थ:। समाधानं मनस: एकाग्रताकरणं शुभोपयोगे शुद्धे वा। =मन को एकाग्र करना, सम शब्द का अर्थ एकरूप करना ऐसा है जैसे घृत संगत हुआ, तैल संगत हुआ इत्यादि। मन को शुभोपयोग में अथवा शुद्धोपयोग में एकाग्र करना यह समाधि शब्द का अर्थ समझना।
म.पु./२१/२२६ यत्सम्यक् परिणामेषु चित्तस्याधानमञ्जसा। स समाधिरिति ज्ञेय: स्मृतिर्वा परमेष्ठिनाम् ।२२६। उत्तम परिणामों में जो चित्त का स्थिर रखना है वही यथार्थ में समाधि या समाधान है अथवा पंच परमेष्ठियों के स्मरण को समाधि कहते हैं।
देखें - उपयोग / II / २ / १ साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योगनिरोध, और शुद्धोपयोग ये समाधि के एकार्थवाची नाम हैं।
देखें - ध्यान / ४ / ३ ध्येय और ध्याता का एकीकरण रूप समरसी भाव ही समाधि है।
सं.स्तो./टी./१६/२९ धर्मं शुक्लं च ध्यानं समाधि:। =धर्म और शुक्ल ध्यान को समाधि कहते हैं।
स्या.म./टी./१७/२२९/१६ बहिरन्तर्जल्पत्यागलक्षण: योग: स्वरूपे चित्तनिरोधलक्षणं समाधि:। =बहिर और अन्तर्जल्प के त्याग स्वरूप योग है। और स्वरूप में चित्त का निरोध करना समाधि है।
देखें - अनुप्रेक्षा / १ / ११ सम्यग्दर्शनादि को निर्विघ्न अन्य भव में साथ ले जाना समाधि है।
२. साधु समाधि भावना का लक्षण
स.सि./६/२४/३३९/१ यथा भाण्डागारे दहने समुत्थिते तत्प्रशमनमनुष्ठीयते बहूपकारत्वात्तथानेकव्रतशीलसमृद्धस्य मुनेस्तपस: कुतश्चित्प्रत्यूहे समुपस्थिते तत्संधारणं समाधि:। =जैसे भाण्डागार में आग लग जाने पर बहुत उपकारी होने से आग को शान्त किया जाता है, उसी प्रकार अनेक प्रकार के व्रत और शीलों से समृद्ध मुनि के तप करते हुए किसी कारण से विघ्न के उत्पन्न होने पर उसका संधारण करना शान्त करना समाधि है। (रा.वा./६/२४/८/५३०/१); (चा.सा./५४/४)।
ध.८/३,४१/८८/१ साहूणं समाहिसंधारणदाए-दंसण-णाण-चरित्तेसु-सम्मवट्ठाणं समाही णाम। सम्मं साहणं धारणं संधारणं। समाहीए संधारणं समाहिसंधारणं, तस्स भावो समाहिसंधारणदा। ताए तित्थयरणामकम्मं वज्झदि त्ति। केण वि कारणेण पदंतिं समाहिं दट्ठूण सम्मादिट्ठी पवयणवच्छलो पवयणप्पहावओ विणयसंपण्णो सीलवदादिचारवज्जिओ अरहंतादिसु भत्तो संतो जदि धारेदि तं समाहिसंधारणं। ...सं सद्दपउं जणादो। =साधुओं की समाधिसंधारणा से तीर्थंकर नामकर्म बाँधता है - दर्शन, ज्ञान व चारित्र में सम्यक् अवस्थान का नाम समाधि है। सम्यक् प्रकार से धारण या समाधि का नाम संधारण है। समाधि का संधारण समाधिसंधारण और उसके भाव का नाम समाधि-संधारणता है। उससे तीर्थंकर नाम-कर्म बँधता है। किसी भी कारण से गिरती हुई समाधि को देखकर सम्यग्दृष्टि, प्रवचनवत्सल, प्रवचन प्रभावक, विनय सम्पन्न, शील-व्रतातिचार वर्जित और अर्हन्तादिकों में भक्तिमान् होकर चूँकि उसे धारण करता है इसलिए वह समाधि संधारण है। ...यह संधारण शब्द में दिये गये 'सं' शब्द से जाना जाता है।
भा.पा./टी./७७/२२१/१ मुनिगणतप: संधारणं साधुसमाधि:। =मुनिगण तप को सम्यक् प्रकार से धारण करते हैं वह साधु समाधि है।
३. एक साधु समाधि भावना में शेष १५ भावनाओं का अन्तर्भाव
ध.८/३,४१/८८/६ ण च एत्थ सेसकारणाभावो, तदत्थित्तस्स दरिसिदत्तादो। एवमेदं नवमं कारणं। =इस (साधु समाधि संधारणता) में शेष कारणों का अभाव नहीं है, क्योंकि उनका अस्तित्व (किसी भी कारण से गिरती हुई समाधि को देखकर सम्यग्दृष्टि, प्रवचनवत्सल, प्रवचन प्रभावक, विनयसम्पन्न ...आदि होकर उसे धारण करता है इसलिए वह समाधिसंधारणा है - देखें - ऊपर वाला शीर्षक ) वहाँ दिखला ही चुके हैं। इस प्रकार वह तीर्थंकर नामकर्म बँधने का नवम कारण है।
* अन्य सम्बन्धित विषय
१. निर्विकल्प समाधि व शुक्लध्यान की एकार्थता। - देखें - पद्धति।
२. परम समाधि के अपरनाम। - देखें - मोक्षमार्ग / २ / ५ ।
३. अन्य मत मान्य समाधि ध्यान नहीं है। - देखें - प्राणायाम।
४. एक ही भावना से तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध सम्भव। - देखें - भावना / २ ।