सर्वतोभद्र व्रत
From जैनकोष
१.लघु विधि
पंक्ति नं. | जोड़ | दिखाये गये प्रस्तार में १ से ५ तक के अंक ५ पंक्तियों में इस प्रकार लिखे गये हैं कि ऊपर नीचे आड़े टेढ़े किसी भी प्रकार पंक्तिबद्ध से जोड़ने पर १५ लब्ध आते हैं। पंक्ति नं.१ फिर पंक्ति नं.२ आदि में जितने-जितने अंक लिखे हैं उतने-उतने उपवास क्रमपूर्वक कुल ७५ करे। बीच के स्थानों में सर्वत्र एक-एक पारणा करे। त्रिकाल नमस्कार मन्त्र का जाप्य करे। (ह.पु./३४/५१-५५); (व्रत विधान संग्रह/पृ.६०)। | |||||
१ | १ | २ | ३ | ४ | ५ | =१५ | |
२ | ४ | ५ | १ | २ | ३ | =१५ | |
३ | २ | ३ | ४ | ५ | १ | =१५ | |
४ | ५ | १ | २ | ३ | ४ | =१५ | |
५ | ३ | ४ | ५ | १ | २ | =१५ | |
१५ | १५ | १५ | १५ | १५ | =७५ |
२. वृहत् विधि।
प्रस्तार में १ से ७ तक के अंक सात पंक्तियों में इस क्रम से लिखे गये हैं कि ऊपर से नीचे आड़े ढेढ़े किसी प्रकार भी जोड़ने पर २८ लब्ध आता है। प्रथम द्वितीय आदि पंक्ति में लिखे क्रम से कुल १९६ उपवास करे। बीच के सब स्थानों में एक-एक पारणा करे। त्रिकाल नमस्कार मंत्र का जाप्य करे। (ह.पु.३४/५७-५८), (व्रत विधान संग्रह/पृ.६१) | पंक्ति | जोड़ | |||||||
१ | १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | =२८ | |
२ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | १ | २ | =२८ | |
३ | ५ | ६ | ७ | १ | २ | ३ | ४ | =२८ | |
४ | ७ | १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | =२८ | |
५ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | १ | =२८ | |
६ | ४ | ५ | ६ | ७ | १ | २ | ३ | =२८ | |
७ | ६ | ७ | १ | २ | ३ | ४ | ५ | =२८ | |
२८ | २८ | २८ | २८ | २८ | २८ | २८ | =१९६ |