सुदर्शन
From जैनकोष
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर-देखें - विद्याधर ;
- सुमेरु पर्वत का अपर नाम-देखें - सुमेरु ;
- मानुषोत्तर पर्वतस्थ स्फटिक कूट का स्वामी भवनवासी सुपर्ण कुमार देव- देखें - लोक / ५ / १० ;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट- देखें - लोक / ५ / १३ ;
- नवग्रैवेयक स्वर्ग का प्रथम पटल व इन्द्रक- देखें - स्वर्ग / ५ / ३ ;
- भगवान् वीर के तीर्थ में अन्तकृत केवली हुए-देखें - अंतकृत ;
- पूर्वभव नं.२ में वीतशोका पुरी का राजा था। पूर्वभव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में पंचम बलभद्र हुए हैं। (म.पु./६१/६६-६९) विशेष- देखें - शलाका पुरुष / ३ ;
- चम्पा नगरी के राजा वृषभदास का पुत्र था। महारानी अभयमती इनके ऊपर मोहित हो गयीं परन्तु ये ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहे। रानी ने क्रुद्ध होकर इनको सूली की सजा दिलायी, परन्तु इनके शील के प्रभाव से एक व्यन्तर ने सूली को सिंहासन बना दिया। तब इन्होंने विरक्त हो दीक्षा ग्रहण कर ली। इतने पर भी छल से रानी ने इनको पडगाह कर तीन दिन तक कुचेष्टा की। परन्तु आप ब्रह्मचर्य में अडिग रहे। फिर पीछे वन में घोर तप किया। उस समय रानी ने वैर से व्यन्तरी बनकर घोर उपसर्ग किया। ये उपसर्ग को जीत कर मोक्ष धाम पधारे। (सुदर्शन चरित्र)