सुलोचना
From जैनकोष
म.पु./सर्ग/श्लोक...पूर्वभव नं.४-में रतिवेगा नामक सेठ सुता थी (४६/१०५,८७) तीसरे में रतिषेणा कबूतरी (४६/८६) दूसरे में प्रभावती (४६/१४८) पूर्वभव में स्वर्ग में देव थी (४६/२५०) वर्तमान भव में काशी राजा के अकम्पन की पुत्री थी (४३/१३५)। भरतचक्री के सेनापति जयसेन से विवाही गयी (४३/२२६-२२९)। भरतसुत अर्ककीर्ति ने इसके लिए जयसेन से युद्ध किया। परन्तु इसके अनशन के प्रभाव से युद्ध समाप्त हो गया (४५/२-७) तब जयसेन ने इसको अपनी पटरानी बनाया (४५/१८१) एक समय देवी द्वारा पति के शील की परीक्षा करने पर इसने उस देवी को भगा दिया (४७/२६८-२७३)। अन्त में पति के दीक्षा लेने पर शोकचित्त हो स्वयं भी दीक्षा ले ली। तथा घोर तपकर अच्युत स्वर्ग में जन्म लिया। आगामी पर्याय से मोक्ष होगा। (४७/२८६-२८९)।