स्तूप
From जैनकोष
- म.पु./२२/२६४ जनानुरागास्ताद्रूप्यम् आपन्ना इव ते बभु:। सिद्धार्हत्प्रतिबिम्बौधै: अभितश्चित्रमूर्तय:। = अर्हन्त सिद्ध भगवान् की प्रतिमाओं से वे स्तूप चारों ओर से चित्रविचित्र हो रहे थे और सुशोभित हो रहे थे मानो मनुष्यों का अनुराग ही स्तूपों रूप हो रहा हो।२६४। समवशरण स्थिति स्तूप-देखें - समवशरण
- Pyramid. (ज.प./प्र./१०८)