(धवला पुस्तक संख्या २/प्र.४/ H.L.Jain नन्दिसंघ के देशिय गण की गुर्वावली के अनुसार यह गण्डविमुक्तदेव के शिष्य थे। त्रैविद्यदेव आपकी उपाधि थी। समय - वि. १२२५-१२३९ (ई.११५८-११८२) आता है। विशेष - देखे इतिहास ७/५।