अग्निकुमार
From जैनकोष
दस प्रकार के भवनवासी देवों में नौवें प्रकार के देव । ये सदैव जाज्वल्यमान होकर पाताल में रहते हैं । ये देव समवसरण के सातवें कक्ष में बैठते हैं । महापुराण 62.455, हरिवंशपुराण 2.82, 4.64-65 अग्निकेतु― गन्धवती नगरी के राजपुरोहित का पुत्र, सुकेतु का भाई । सुकेतु के विवाहित हो जाने पर दोनों भाइयों को पृथक-पृथक् की गयी शयन-व्यवस्था से दु:खी होकर सुकेतु ने मुनि अनन्तवीय से दीक्षा धारण कर ली तथा भाई के वियोग से दु:खी होकर यह तापस बन गया । अन्त में सुकेतु ने अपने गुरु से उपाय जानकर इसे भी दिगम्बर मुनि बना लिया । महापुराण 41.115-136