अंगप्रविष्ट
From जैनकोष
श्रुत का प्रथम भेद गणधरों द्वारा सर्वज्ञ का वाणी से रचा गया श्रुत है । यह ग्यारह अंग और चौदह पूर्व रूप होता है । हरिवंशपुराण 2.92-101 देखें अंग और पूर्व
श्रुत का प्रथम भेद गणधरों द्वारा सर्वज्ञ का वाणी से रचा गया श्रुत है । यह ग्यारह अंग और चौदह पूर्व रूप होता है । हरिवंशपुराण 2.92-101 देखें अंग और पूर्व