कनकशांति
From जैनकोष
जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा सहस्रायुध और रानी श्रीषेणा का पुत्र । इसकी दो रानियाँ थीं जिनमें विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में शिवमन्दिर नगर के राजा मेघवाहन और रानी विमला की पुत्री कनकमाला इसकी बड़ी रानी थी और वस्तोकसार नगर के राजा समुद्रसेन विद्याधर की पुत्री वसन्तसेना छोटी रानी । एक समय यह अपनी दोनों रानियों के साथ वन-विहार के लिए गया था । वहाँ मुनि विमलप्रभ से तत्त्वज्ञान प्राप्त कर इसने दीक्षा धारण कर ली थी और इसके दीक्षित होने पर इसकी दोनों रानियाँ, भी विमलमती गणिनी से दीक्षित हो गयी थीं । रत्नपुर के राजा रत्नसेन ने इसे आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । चित्रचूल द्वारा किये गये उपसर्गों को जीतकर इसने घातियाकर्मों को नष्ट किया और यह केवली हुआ इसका अपरनाम कनकशान्त था । महापुराण 63. 45-56, 116-130, पांडवपुराण 5.11, 14-15, 37-44