दण्ड
From जैनकोष
(1) केवली के समुद्घात करने का प्रथम चरण । जब केवली के आयुकर्म की अन्तर्मुहूर्त तथा अधातिया कर्मों की स्थिति अधिक होती है तब वह दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण के द्वारा सब कर्मों की स्थिति बराबर कर लेता है । महापुराण 38.307, 48-52, हरिवंशपुराण 56. 72-74
(2) क्षेत्र का प्रमाण । यह दो किष्कु प्रमाण (चार हाथ) होता है । इसके अपर नाम धनुष और नाड़ी है । महापुराण 19.54, हरिवंशपुराण 7.46
(3) प्रयोजन सिद्धि के साम, दान, दण्ड, भेद इन चार राजनीतिक उपायों में तीसरा उपाय । शत्रु की घास आदि आवश्यक सामग्री की चोरी करा देना, उसका वध करा देना, आग लगा देना, किसी वस्तु को छिपा देना या नष्ट करा देना इत्यादि अनेक बातें इस उपाय के अन्तर्गत जाती है । अपराधियों के लिए यही प्रयुज्य होता है । महापुराण 68. 62-65, हरिवंशपुराण 50. 18
(4) कर्मभूमि से आरम्भ में योग और क्षेम व्यवस्था के लिए हा, मा, और धिक् इस त्रिविध दण्ड की व्यवस्था की गयी थी । महापुराण 16.250
(5) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सैन्यपुरोगामी और एक हजार देवों द्वारा रक्षित होता है । भरतेश के पास यह रत्न था । महापुराण 28.2-3, 37. 83-85
(6) इन्द्र विद्याधर का पक्षधर एक योद्धा । पद्मपुराण 12.217
(7) महाबल का पूर्व वंशज एक विद्याधर । यह मरकर अपने ही भण्डार में अजगर सर्प हुआ था । महापुराण 5.117-121