नन्दन
From जैनकोष
(1) विजयार्ध उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । हरिवंशपुराण 22.89
(2) मानुषोत्तर पर्वत की दक्षिण दिशा के रुचककूट का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण 5.603
(3) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवां इन्द्रक विमान । हरिवंशपुराण 6.45, देखें सौधर्म
(4) बलदेव का एक पुत्र । हरिवंशपुराण 48.67
(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें गणधर । महापुराण 43.55, हरिवंशपुराण 12.56
(6) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन । अपरनाम महोद्यान । यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है । इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यन्तर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है । इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सौमनस वन है । महापुराण 5.144, 172, 183, 7.35, 13. 69, 47.263, 57.75, 71.362, पद्मपुराण 6.135, 23.13, हरिवंशपुराण 5.290-295, 307, 328, 8.190, 60.46, वीरवर्द्धमान चरित्र 8.111-112
(7) नन्दनवन का एक उपवन । हरिवंशपुराण 5.307
(8) नन्दनवन का प्रथम कूट । हरिवंशपुराण 5.329
(9) विजय नगर के राजा महेन्द्रदत्त के गुरु । महेन्द्रदत्त दसवें चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था । पद्मपुराण 20. 185-186
(10) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर । महापुराण 60-58
(11) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । महापुराण 62.75-76
(12) एक मुनि । अपनी आयु का एक मास शेष रह जाने पर अमिततेज ने अपने पुत्रों को राज्य देकर इनसे प्रायोपगमन सन्यास लिया था । महापुराण 62.408-410 नन्दनपुर के राजा अमितविक्रम को धनश्री और अनन्तश्री नामक पुत्रियों को इन्होंने धर्मोपदेश दिया था । महापुराण 63.13
(14) एक पर्वत । महापुराण 63.33
(15) नन्दपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । महापुराण 63.332-335
(16) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । महापुराण 76.472
(17) नन्दन भवन का राजा यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । पद्मपुराण 37.20
(18) एक देश । सीता के पुत्र लवण और अंकुश ने यह देश जीता था । पद्मपुराण 101.77
(19) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे । इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था । यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ । पांडवपुराण 60.5-6, 10, 70.12-16, 88.1-4
(20) सौधर्मेन्द्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.167