परिग्रहानंद
From जैनकोष
रौद्रध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रहों की रक्षा में आनन्द मानना । हरिवंशपुराण 56.19,25-26
रौद्रध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रहों की रक्षा में आनन्द मानना । हरिवंशपुराण 56.19,25-26