पल्य
From जैनकोष
व्यवहार काल का एक भेद । एक योजन लम्बे, चौड़े और गहरे गर्त को नवजात शिशु-भेड़ के बालों के अग्रभाग से ठीक-ठीक कर भरने के उपरान्त सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक रोमखण्ड निकालते हुए रिक्त करने में जितना समय लगे वह पल्य हे । इतने काल को असंख्यात वर्ष भी कहते है । महापुराण 3.53, पद्मपुराण 20.74-76, हरिवंशपुराण 3.124