पल्यंक
From जैनकोष
एक आसन । इस आसन में अंक में बाये हाथ की हथेली पर दायें हाथ की हथेली रहती है । दोनों हाथों की हथेलियाँ ऊपर की ओर होती हैं । आँखों को न तो अधिक खोला जाता है न बिल्कुल बन्द किया जाता है । दृष्टि नासाग्र होती है । मुख बन्द और शरीर सम, सरल तथा निश्चल होता है । यह आसन धर्मध्यान के लिए सुखकर होता है । महापुराण 21.60-62, 72, 34.188