पंकबहुल
From जैनकोष
रत्नप्रभा पृथिवी के तीन भागों मै द्वितीय भाग । यह भाग चौरासी हजार योजन मोटा है । यहाँ राक्षसों और असुरकुमारों के रत्नमय देदीप्यमान भवन होते हैं । हरिवंशपुराण 4.47-50
रत्नप्रभा पृथिवी के तीन भागों मै द्वितीय भाग । यह भाग चौरासी हजार योजन मोटा है । यहाँ राक्षसों और असुरकुमारों के रत्नमय देदीप्यमान भवन होते हैं । हरिवंशपुराण 4.47-50