पूर्णचंद्र
From जैनकोष
(1) विद्याधर दृढ़रथ का वंशज । यह पूश्चन्द्र का पुत्र और बालेन्दु का पिता था । पद्मपुराण 5.47-56
(2) राम का सिहरथवाही सामन्त । बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण की साधना में विश्व उत्पन्न करने के लिए यह लंका गया था । यह भरत के साथ दीक्षित हो गया । पद्मपुराण 58.9-11 70. 12-16, 88.1-6
(3) भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन और उसकी रानी रामदत्ता का छोटा पुत्र । यह सिंहचन्द्र का अनुज था । सिंहसेन के मरने पर सिंहचन्द्र राजा और यह युवराज हुआ । सिंहचन्द्र के दीक्षित होने पर इसने कुछ समय तक राज्य किया । सिंहचन्द्र मुनि से इसे धर्मोपदेश मिला । यह भी विरक्त होकर मुनि हो गया और मरने के पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग के वैडूर्य विमान में वैडूर्य देव हुआ । महापुराण 59.146, 192-202, 224-222, हरिवंशपुराण 27.46-59
(4) पोदनपुर का राजा हिरण्यबली इसकी रानी और रामदत्ता इसकी पुत्री थी इसने राहुभद्र मुनि से दीक्षा लेकर अवधिज्ञान प्राप्त किया था । रानी हिरण्यवती ने भी दत्तवती आर्या के समीप आर्यिका के तत धारण किये थे । इसी के उपदेश से रामदत्ता और उसका पुत्र सिंहचक्र दोनों दीक्षित हो गये थे यह स्वयं सम्यग्दर्शन और व्रत से रहित हो जाने के कारण भोगों में आसक्त हो गया था । अन्त में यह रामदत्ता द्वारा समझाये जाने पर दान, पूजा, तप, शील और सम्मान का अच्छी तरह पालन करके सहस्रार स्वर्ग के वैडूर्यप्रभ नामक विमान में देव हुआ । महापुराण 59.207-209, हरिवंशपुराण 27. 55-74
(5) भविष्यत् कालीन सातवां बलभद्र । महापुराण 76.486, हरिवंशपुराण 60.568